18 अगस्त 2020 को भारत सरकार ने 35 साल बाद जब मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय किया तो लोगों को उम्मीदें थी कि आने वाले बजट में शिक्षा पर जोर दिया जाएगा। लेकिन 2021 के बजट में वो देखने को नहीं मिला । नाम परिवर्तन राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के प्रमुख सिफारिशों में से एक था। के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने का सुझाव दिया था।
इससे पहले 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा शिक्षा मंत्रालय का नाम बदल कर मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया गया था। लेकिन शिक्षा में बुनियादी सुधार की तब भी जरूरत थी और आज भी।
सरकार भले ही शिक्षा पर खर्च में वृद्धि और नई शिक्षा नीति के तहत गुणवत्ता में वृद्धि की बात कर रही हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार शिक्षा के लिए आवंटित बजट में वृद्धि नहीं कर रही है। 2014-15 में , जब भाजपा ने सरकार का नेतृत्व शुरू किया , उस वक़्त शिक्षा बजट 4.14 फीसदी था। जो वर्तमान में घटकर 3.5 फीसदी हो गया है। सरकार को चाहिए कि बजट में शिक्षा का आवंटन बढ़ाएं ताकि नई शिक्षा नीति पर जमीनी स्तर से काम हो सके।
भारत सरकार के नई शिक्षा नीति में भी सरकार को कम से कम जीडीपी का 6 फीसदी खर्च करने को कहा गया है। इससे पहले 1968 में भी विशेषज्ञ देश की जीडीपी का 6 फीसदी शिक्षा नीति में खर्च करने का सुझाव देते थे। लेकिन आर्थिक समीक्षा 2019-20 के अनुसार भारत सिर्फ 3.1 फीसदी ही शिक्षा पर खर्च करता है।
दुनिया समझती है शिक्षा की कीमत
दुनिया के कई देश ऐसे है जो अपनी जीडीपी के 6 फीसदी से भी ज्यादा खर्च शिक्षा पर करते है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ( ओईसीडी ) 2018 के अनुसार नॉर्वे का शिक्षा बजट सबसे ज्यादा 6.7 फीसदी है। 6.2 और 6.1 फीसदी के साथ न्यूजीलैंड और यूनाइटेड किंगडम क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर है। ओईसीडी के अनुसार दुनिया में औसतन शिक्षा बजट 4.8 फीसदी है। भारत औसत से भी काफी नीचे है। जापान , इटली और स्पेन की भी स्थिति भारत से बेहतर है।
आवंटित राशि का भी पूर्णरूपेण खर्च नही
सरकार द्वारा एक वितीय वर्ष के लिए जितना भी राशि का आवंटन किया जाता है शिक्षा मंत्रालय द्वारा कभी भी उसका 100 फीसदी उपयोग नही हो सका है। वर्तमान वितीय वर्ष 2021-22 में शिक्षा मंत्रालय का प्रदर्शन और भी खराब है। सीजीए के नवंबर तक के आंकड़ो के अनुसार इस वर्ष शिक्षा मंत्रालय को 93224 करोड़ रुपये आवंटित किए गए जिसमे से मात्र 44285 करोड़ ही खर्च किया गया। इससे स्प्ष्ट है कुल आवंटन का 50 फीसदी भी ख़र्च नही किया गया। इससे पहले 2021 में 99, 2020 में 94 और 2019 में 96 फीसदी ही खर्च किया गया था।
स्कूली शिक्षा पर जोर देना जरूरी
कोरोना महामारी और डिजिटल शिक्षा के कारण बच्चों और स्कूल के बीच एक दूरी बन गयी है जिससे निपटने के लिए सरकार को स्कूली शिक्षा के बजट में वृद्धि करना चाहिए। स्कूल में तालाबंदी के कारण बच्चों का मिड डे मील भी प्रभावित हुआ है इससे उनके स्वास्थ्य और मानसिक चेतना पर प्रभाव पड़ा है । यूनेस्को के अनुसार भारत मे स्कूल 24 सप्ताह पूर्णरूपेण और 82 सप्ताह आंशिक रूप से बन्द रहा। जो कि यूगांडा और बोलीविया के बाद तीसरा सबसे ज्यादा है।
कहाँ खर्च होता है शिक्षा बजट
शिक्षा के लिए आवंटित बजट में से सबसे ज्यादा समग्र शिक्षा ( पूर्व विद्यालय से बारहवीं तक) के लिए 33 फीसदी खर्च किया जाता है। उसके बाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और आईआईटी के लिए 16 फीसदी आवंटित किया जाता है। राज्यों में चल रहे मिड डे मील के लिए और स्वायत संस्था के लिए 12-12 फीसदी खर्च किया जाता है। यूजीसी और एनआईटी के संचालन के लिए सरकार 9 फीसदी का खर्च करती है।
सीजीए के अनुसार वर्ष 2021-22 के लिए सरकार ने शुरुआती 8 महीने में समग्र शिक्षा के लिए आवंटित राशि का मात्र 38 फीसदी ही राज्य सरकार को आवंटित किया है। वहीं राज्य सरकार ने इसमे से मात्र 27 फीसदी ही खर्च किया है।
राज्यों में प्रति बच्चो पर खर्च का अंतर भी चिंता का विषय
शिक्षा समवर्ती सूची के विषय होने के कारण सभी राज्यों में प्रति बच्चा होने वाले खर्च में भी अंतर है, लेकिन अंतर इतना ज्यादा है कि इसे पाटना जरूरी है। 2018 के आंकड़े के अनुसार हिमाचल प्रदेश देश सबसे ज्यादा लगभग 60 हजार रुपया सलाना खर्च करती है वही बिहार 10 हजार का भी आंकड़ा भी छू नही पाता है।
कौशल शिक्षा पर जोर देना जरूरी
कोरोना महामारी के कारण बेरोजगारी चरम पर पहुच गया है । सीएमआईई के आंकड़ो के अनुसार भारत मे बेरोजगारी दर पिछले चार महीनों के उच्च्तम स्तर पर पहुँच गयी है। दिसम्बर 2021 में भारत में बेरोजगारी दर 7.9 प्रतिशत दर्ज किया गया है।जबकि 2021-22 के बजट में आवंटित कौशल विकास के लिए फण्ड 2785 करोड़ में से नवंबर तक 30 फीसदी भी खर्च नही हुआ।
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